Saturday 11 September 2010

मेरी दो ग़ज़लें

एक 
मैं सूफ़ी हूँ दिलों के दरमियाँ ही प्यार करता हूँ
मैं जिस्मानी मुह्ब्बत में कहाँ ऐतबार करता हूँ


कँटीली झाड़ियों के फूल हाथों से नहीं छूते
मैं शीशे के दरीचों से तेरा दीदार करता हूँ


खुली ज़ुल्फ़ों झुकी नज़रों को जब भी देखता हूँ मैं
ग़ज़ल के आईने में बस तेरा श्रंगार करता हूँ


किसी लम्हा अगर कोई मुझे खुशहाल लगता है
मैं अपने ग़म और उसके बीच में दीवार करता हूँ


मैं एक बादल का टुकड़ा हूँ बरसता हूँ जमीनों पर
तपिश में सूखते पेड़ो को सायादार करता हूँ


ऐ मँहगाई खिलौनों के लिये आना पड़ा मुझको
मैं वरना ईद और होली में बाज़ार करता हूँ


सियासत गिरगिटानों की तरह रंगत बदलती है
मैं इक शायर जो कहता हूँ कहाँ इंकार करता हूँ


दो 


हरेक बागे अदब में बहार है हिन्दी
कहीं गुलाब कहीं हरसिंगार है हिन्दी


ये रहीम, दादू और रसखान की विरासत है
कबीर सूर और तुलसी का प्यार है हिन्दी


फिजी, गुयाना, मॉरीशस में इसकी खुश्बू है
हजारों मील समन्दर के पार है हिन्दी


महक खुलूस की आती है इसके नग्मों से
किसी हसीन की वीणा का तार है हिन्दी


चित्र hindi.webdunia.com से साभार
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9 comments:

  1. मैं सूफ़ी हूँ दिलों के दरमियाँ ही प्यार करता हूँ
    मैं जिस्मानी मुह्ब्बत में कहाँ ऐतबार करता हूँ

    kya baat hai........



    महक खुलूस की आती है इसके नग्मों से
    किसी हसीन की वीणा का तार है हिन्दी

    umda ghazalen!

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  2. आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
    बहुत सुन्दर !

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  3. Very nice post tusharji

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  4. बहुत ही सुन्दर गजलेँ तुषारजी बधाई शुभ्रा राय

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  5. Bahut sundar ghazlen tusharji badhai vinod shukla

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  6. हिंदी पर लिखी रचना कित्ती प्यारी है...बधाई.

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  7. किसी लम्हा अगर कोई मुझे खुशहाल लगता है
    मैं अपने ग़म और उसके बीच में दीवार करता हूँ

    Dil ki gaharaiyo se nikali in kavitao ke liye Badhai, aage bhi intajar rahega.
    amit

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  8. आपकी टिपण्णी और उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

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