Thursday 16 January 2014

एक गीत -शहर के एकांत में

चित्र -गूगल से साभार 

एक गीत -शहर के एकांत में  
शहर के 
एकांत में 
हमको सभी छलते |
ढूंढने से 
भी यहाँ 
परिचित नहीं मिलते |

बांसुरी के 
स्वर कहीं 
वन -प्रान्त में खोए ,
माँ तुम्हीं को 
याद कर 
हम देर तक रोए ,
धूप में 
हम बर्फ़ के 
मानिन्द हैं गलते |

रेलगाड़ी 
शोरगुल 
सिगरेट के धूँए ,
प्यास 
अपनी ओढ़कर 
बैठे सभी कूँए ,
यहाँ 
टहनी पर 
कंटीले फूल बस खिलते |

गाँव से 
लेकर चले जो 
गुम हुए सपने ,
गांठ में 
दम हो तभी 
ये शहर हैं अपने ,
यहाँ 

सांचे में सभी 
बाज़ार के ढलते |

भीड़ में 
यह शहर 
पाकेटमार जैसा है ,
यहाँ पर 
मेहमान 
सिर पर भार जैसा है ,
भीड़ में 
तनहा हमेशा 
हम सभी चलते |


[नवगीत की पाठशाला से साभार -मेरे इस गीत को आदरणीय पूर्णिमा जी ने नवगीत की पाठशाला में प्रकाशित किया था ]

12 comments:

  1. सटीक चित्रण लिए काव्य रचना ..... गहरी अभिव्यक्ति

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  2. बहुत सुन्दर गीत....
    हृदयस्पर्शी भाव!!

    सादर
    अनु

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  3. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (17.01.2014) को " सपनों को मत रोको (चर्चा -1495)" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,धन्यबाद।

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  4. इस शहर में हर शख्श परेशान सा क्यूँ है...शहरों की विडंबना को बहुत खूबसूरती से उकेरा है आपने...

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  5. आपकी लिखी रचना शनिवार 18/01/2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    कृपया पधारें ....धन्यवाद!

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  6. सहजता से शहरों को व्यक्त करती शब्द-थिरकन।

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  7. हृदयस्पर्शी भाव सटीक काव्य रचना !!

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  8. बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

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  9. बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

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  10. आप सभी का हृदय से आभार |

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  11. वाह बहुत सुन्दर नवगीत .. बहुत खूब ..

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  12. बेहद गहन व सार्थक प्रस्तुति।।।

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